देशाटन पर निबंध | Tourism Essay in Hindi
देशाटन पर निबंध | Tourism par nibandh | Tourism par nibandh in Hindi | देशाटन पर निबंध | Tourism par Hindi Essay | Essay on Tourism in Hindi
अर्थ
‘देशाटन’ का अर्थ है-देश-विदेश में घूमना, भ्रमण करना । विभिन्न महत्त्वपूर्ण स्थानों के ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक, भौगोलिक तथा सांस्कृतिक स्थानों का भ्रमण करना ही देशाटन कहलाता है। अपने व्यापार आदि के लिए किसी देश की यात्रा करना देशाटन नहीं कहा जा सकता। यदि कोई व्यक्ति किसी स्थान की सांस्कृतिक-सामाजिक परंपराओं, वहाँ के रहन-सहन, रीति-रिवाजों, संस्कृति, भाषा, साहित्य, जीवन-दर्शन आदि का यथोचित ज्ञान प्राप्त करता है, तो निश्चय ही उसे ‘देशाटन’ की संज्ञा दी जा सकती है।
देशाटन के कारण
मानव स्वभाव से ही जिज्ञासु’ रहा है। उसकी यही जिज्ञासा जहाँ उसे अन्य बातों की ओर प्रेरित करती है, वहीं उसे देशाटन के लिए प्रेरित करती है। यद्यपि किसी स्थान की जानकारी पुस्तकों के माध्यम से भी प्राप्त की जा सकती है, पर साक्षात दर्शन का तो आनंद ही अनूठा है। किसी स्थान, दृश्य अथवा वस्तु के प्रत्यक्ष दर्शन से व्यक्ति का ज्ञान सर्वांगीण तथा स्थायी हो जाता है। देशाटन व्यक्ति के विचारों को उदार, उसके दृष्टिकोण को विस्तृत तथा उसके हदय को विशाल बनाता है। किसी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की भाषा, धर्म, संस्कृति, जीवन दर्शन तथा आचार-विचार में कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं ? कौन-कौन-सी अच्छाइयाँ हैं-यह केवल देशाटन द्वारा ही जाना जा सकता है। देशाटन द्वारा ज्ञान प्राप्ति तो होती ही है, इसके अतिरिक्त मनोरंजन तथा स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। यही कारण है कि विशेष दशाओं में चिकित्सक रोगियों को पर्वतीय स्थानों पर ले जाने का परामर्श देते हैं। देशाटन से जलवायु परिवर्तन हो जाता है जिससे शरीर में नए उत्साह तथा स्फूर्ति का संचार होता है।
प्राचीन काल में अनेक यात्री देशाटन करते हुए अनेक देशों में पहुँचे। फाहियान, वेनसांग, इब्नबतूता इत्यादि के नाम विशेष रूप से गिनाए जा सकते हैं, जो भारत में आए तथा जिन्होंने अपने ग्रंथों में भारत की महिमा का वर्णन किया। देशाटन के कारण ही कोलंबस द्वारा नई दुनिया की खोज हुई। देशाटन की प्रेरणा से ही वास्को-डि-गामा भारत पहुँचा तथा भारत के अनेक ‘घुमक्कड़ों’ ने सिंहल द्वीप, मलाया, बर्मा, बोर्नियो आदि अनेक देशों का पता लगाया। बौद्ध धर्म का प्रचार करने हमारे अनेक घुमक्कड़ दूर-दूर के देशों में गए। इस प्रकार इस कथन में अत्युक्ति नहीं कि देशाटन द्वारा धर्म तथा संस्कृति के प्रचार को भी बल मिला है।
महत्त्व/ लाभ
भारत के अनेक संत-महात्मा अपने जीवन में घुमक्कड़ रहे। कबीर, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, दयानंद तथा स्वामी विवेकानंद स्थान-स्थान की यात्रा करके धर्म और संस्कृति का प्रकाश फैलाते रहे । शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार तीर्थों की स्थापना की, और महर्षि दयानंद के शिष्यों ने विश्व में वेदों का डंका बजाया। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति, वेदांत तथा धर्म को समूचे विश्व में फैलाया।
पर्यटन के लिए मिलने वाली सुविधाएँ
प्राचीन काल में देशाटन के लिए इतनी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं जितनी कि आज हैं। आजकल एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना-जाना अत्यंत सुगम तथा सरल हो गया है। विभिन्न देशों की सरकारें पर्यटन या देशाटन को बढ़ाने के लिए पर्यटकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ तथा रियायतें देती हैं। विभिन्न देशों तथा स्थानों के संबंध में विस्तृत जानकारी भी पहले से उपलब्ध रहती है।
अत: यह स्पष्ट है कि देशाटन केवल राष्ट्रीय एकता दृढ़ करने में ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव, मैत्री तथा सहयोग बढ़ाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ‘पर्यटन’ आज एक व्यवसाय के रूप में फल-फूल रहा है। किसी ने ठीक ही कहा है” —
सैर कर दुनिया की गाफ़िल, जिंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ।’