भारत की ऋतुएँ पर निबंध | Seasons in India Essay in Hindi
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छः ऋतुएँ-भारत में विशेष
भारत की धरा प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से विश्व में अनूठा स्थान रखती है। विश्व के अन्य देशों में प्राय: तीन ही ऋतुएँ होती हैं, पर भारत में ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमंत, शिशिर तथा वसंत-इन छ: ऋतुओं का चक्र गतिशील रहता है।
वसंत ऋतु को ‘ऋतुराज’ कहा गया है। वसंत में पृथ्वी का श्रृंगार देखते ही बनता है। चारों ओर पुष्पों तथा फलों की भरमार सबका मन मोह लेती है। चारों ओर मादकता, सौंदर्य, प्रफुल्लता तथा सुगंध का साम्राज्य छा जाता है। पुष्पों पर तितलियों तथा भ्रमरों का गुंजार होने लगता है। न अधिक सरदी, न अधिक गरमी। समस्त चराचर में नई स्फूर्ति का संचार होता है। वसंत पंचमी और रंगों का त्योहार होली इसी ऋतु में मनाए जाते हैं।
ऋतुओं का क्रम
वसंत के बाद धीरे-धीरे शुरू होता है, ग्रीष्म का साम्राज्य। भयंकर गरमी, लू तथा तेज़ धूप से पृथ्वी तवे की तरह जलने लगती है। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच जाती है। सभी की नज़रें आकाश पर जा टिकती हैं। पेड़-पौधे झुलस जाते हैं । कुओं, तालाबों आदि का पानी सूखने लगता है। इसका अर्थ यह नहीं कि ग्रीष्म ऋतु का कोई महत्त्व नहीं । ग्रीष्म ऋतु के बिना अन्न नहीं पक सकता। इसीलिए अन्न के उत्पादन में इस ऋतु का बहुत महत्त्व है।
ग्रीष्म की भयंकर तपन के बाद आती है-सुहावनी वर्षा जो अपने साथ नवजीवन का संदेश लाती है। आकाश में काले काले बादल छाने लगते हैं और वर्षा की बूंदों से धरती की प्यास बुझनी प्रारंभ हो जाती है। पशु-पक्षियों को चैन की साँस मिलती है। वर्षा के जल से धरती की प्यास तो बुझती ही है, खेतों में अन्न भी उगता है। चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली छा जाती है। इस ऋतु में चारों ओर जल-ही-जल दिखाई देने लगता है। मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं, प्राय: बाढ़ें आ जाती हैं तथा मच्छर-मक्खियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। लेकिन इस ऋतु के अभाव में जीवन संभव नहीं, क्योंकि जल ही जीवन का आधार है। इस ऋतु में तीज तथा रक्षाबंधन जैसे त्योहार आते हैं।
धीरे-धीरे वर्षा समाप्त होने लगती है तथा आगमन होता है-शरद ऋतु का गुलाबी जाड़े से। इस ऋतु में भी अधिक सरदी नहीं पड़ती। यह ऋतु वर्षा के प्रकोप से राहत दिलाती है। आकाश में बादल दिखाई नहीं देते तथा मौसम भी सुहावना रहता है। विजयदशमी और दीपावली-ये दो बड़े पर्व भी इस ऋतु में ही मनाए जाते हैं।
शरद के बाद सरदी बढ़ने लगती है तथा आगमन होता है-हेमंत ऋतु का। सूर्य दक्षिणायन की ओर अपनी यात्रा आरंभ कर देता है। वायु में ठंड बढ़ जाती है, जिससे लोग ठिठुरने लगते हैं । यह ऋतु स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी है । इस ऋतु में पाचन शक्ति के बढ़ने से खाया-पिया हजम हो जाता है। इन्हीं दिनों में पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ गिरती है। बर्फ गिरने से ठंडी हवाएँ चलती हैं तथा मैदानी भागों में भी ठंड बढ़ जाती है।
हेमंत के बाद आती है-शिशिर ऋतु। इस ऋतु को पतझड़’ भी कहते हैं। इस ऋतु में वृक्षों से पत्ते गिरने लगते हैं। ऐसा लगता है मानो ‘प्राचीन’ को त्यागकर ‘नवीन’ के लिए स्थान दिया जा रहा है। प्रातः तथा सायं काल कोहरा भी छाने लगता है। इस ऋतु में यदि पुराने पत्ते न झड़ें तो नए कैसे आ पाएँगे? अत: यह ऋतु भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
हमारे जीवन में महत्त्व
ऋतुओं का यह चक्र प्रकृति नटी द्वारा अभिनीत नृत्य नाटिका की भाँति लगता है, जिसमें एक के बाद एक दृश्य आते हैं। सभी ऋतुओं का अपना-अपना महत्त्व है तथा सभी अपनी-अपनी विशेषताओं से इस देश को अनुप्राणित करती हैं। भारत की इन्हीं विशेषताओं पर मुग्ध होकर इकबाल ने ठीक ही कहा था — ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा।’