Wednesday, May 17, 2023
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सत्संगति पर निबंध | Satsangati Essay in Hindi

सत्संगति पर निबंध | Satsangati Essay in Hindi

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सत्संगति पर निबंध | Satsangati Essay in Hindi

“कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन।”

संगति का मानव पर प्रभाव

उत्तम प्रकृति के मनुष्यों के साथ उठना-बैठना ही सत्संगति है। मानव को समाज में जीवित रहने तथा महान बनने के लिए सत्संगति परमावश्यक है। स्वाति की एक बूंद भिन्न-भिन्न वस्तुओं की संगति पाकर उन्हीं के अनुरूप परिवर्तित हो जाती है। केले के संपर्क में आने पर बूंद, सीप के संपर्क में आने पर मोती, परंतु सर्प के संपर्क में आने पर विष बन जाती है। भाव यह है कि संगति अपना प्रभाव अवश्य दिखाती है। जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, उसी प्रकार सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति महानता के उच्चासन पर आसीन हो जाता है। यदि कोई काजल की कोठरी में जाता है, तो उस पर काजल का कोई-न-कोई चिहन अंकित होना स्वाभाविक है। भाव यह है कि यदि सत्संगति व्यक्ति को महान बनाती है, तो कुसंगति उसे क्षुद्र।

सत्संगति-आत्म संस्कार का महत्त्वपूर्ण साधन

‘सत्संगति’ आत्म-संस्कार का महत्त्वपूर्ण साधन है। वह बुद्धि की जड़ता को हरती है, वाणी में सच्चाई लाती है; सम्मान और उन्नति का विस्तार करती है तथा कीर्ति का चारों दिशाओं में विस्तार करती है। काँच भी सोने के आभूषण में जड़े जाने पर मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है। सत्संगति व्यक्ति को अज्ञान से ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, जड़ता से चैतन्य की ओर, घृणा से प्रेम की ओर, ईर्ष्या से सौहार्द की ओर तथा अविद्या से विद्या की ओर ले जाती है।

इतिहास के उदाहरण

इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं कि सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति का जीवन ही बदल गया। कुख्यात डाकू रत्नाकर सत्संगति के प्रभाव से वाल्मीकि बन गए। महान पुरुषों का साथ अत्यंत लाभकारी होता है। कमल पत्ते पर पड़ी जैसी शोभा देती है। संत-कवि तुलसीदास ने ठीक ही कहा है-‘बिनु सत्संग विवेक न होई’ । सत्संगति की महिमा का बखान करते हुए कबीर ने भी कहा है-

“कबिरा संगत साधु की, हरै और की व्याधि।
संगत बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि॥”

महाकवि तुलसीदास ने ठीक कहा है-“शठ सुधरहिं सत्संगति पाए।” सज्जनों के साथ रहकर दुराचारी भी अपने दुष्कर्मों को त्याग देता है।

कुसंग से हानियाँ

दुर्जन का संग करने पर व्यक्ति को पग-पग पर मानहानि उठानी पड़ती है। लोहे के साथ पवित्र अग्नि को भी लुहार हथौड़ों से पीटता है। रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि “कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है।” कुसंगति के कारण महान-से-महान व्यक्ति पतन के गर्त में गिरते देखे गए हैं। मंथरा की संगति के कारण कैकेयी ने राम को वन में भेजने का कलंक अपने माथे पर लिया। महाबली भीष्म, द्रोण और दानवीर कर्ण जैसे महान पुरुष दुर्योधन, दुःशासन आदि की कुसंगति के कारण पथ-भ्रष्ट हो गए थे। गंगा जब समुद्र में मिलती है तो वह भी अपनी पवित्रता खो बैठती है।

विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का महत्व

विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का अत्यंत महत्त्व है। इस काल में विद्यार्थी पर जो भी अच्छे-बुरे संस्कार पड़ जाते हैं, वे जीवन भर छूटते नहीं। अतः युवकों को अपनी संगति की ओर से विशेष सावधान रहना चाहिए। विद्यार्थियों की निर्दोष तथा निर्मल बुद्धि पर कुसंगति का वज्रपात न हो जाए, यह प्रतिक्षण देखना अभिभावकों का भी कर्तव्य है।

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