Samas in Hindi (समास इन हिंदी) | Samas ki Paribhasha Aur Uske Bhed, Udaharan (Examples)
इस लेख में हम आपको समास की परिभासा (Samas ki paribhasa) (Samas kise kahate hain), समास के भेद (Samas ke bhed) और Samas के उदाहरण के बारे में बताने वाले हैं। इस Article में समास के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। इसको ध्यान से पढे।
शब्द निर्माण की प्रक्रिया उपसर्ग-प्रत्यय के साथ-साथ समास द्वारा भी हो सकती है। दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जब एक नया शब्द बनाया जाता है तो उस शब्द-रचना विधि को ‘समास रचना’ कहा जाता है; जैसे-स्नान के लिए गृह = स्नानगृह, दश हैं जिसके आनन = दशानन, घोड़े पर सवार = घुड़सवार, हिंदी के प्रचार के लिए सभा – हिंदी प्रचार सभा आदि।
समास किसे कहते हैं? (What is Samas in Hindi)
‘समास’ वह शब्द रचना है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं।
समास रचना में दो शब्द (पद) होते हैं। पहला पद पूर्व पद कहा जाता है और दूसरा पद उत्तर पद तथा इन दोनों के समास से बना नया शब्द समस्त पद; जैसे —
पूर्व पद और उत्तर पद | समस्तपद |
दश हैं जिसके आनन | दशानन |
राजा का पुत्र | राजपुत्र |
घोड़े पर सवार | घुड़सवार |
यश को प्राप्त | यशप्राप्त |
जब समस्तपद के सभी पद अलग-अलग किए जाते हैं, तब उस प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं; जैसे — ‘सीता-राम’ समस्त पद का विग्रह होगा — सीता और राम।
समास प्रक्रिया से शब्द-निर्माण
हिंदी में समास प्रक्रिया के अंतर्गत तीन प्रकार से शब्दों की रचना हो सकती है :
1. तत्सम + तत्सम शब्दों के समास से; जैसे —
- राष्ट्र + पिता = राष्ट्रपिता
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
- स्नान के लिए गृह = स्नानगृह
2. तद्भव + तद्भव शब्दों के समास से; जैसे —
- घोड़े पर सवार = घुड़सवार
- चार, पाई = चारपाई
- बैलों की गाड़ी = बैलगाड़ी
3. विदेशी + विदेशी शब्दों के समास से; जैसे —
- हवा का जहाज़ = हवाईजहाज़
- आराम के लिए गाह = आरामगाह
- जेब के लिए खर्च = जेबखर्च
हिंदी में ऐसे समस्त शब्द भी मिलते हैं जो दो भिन्न-भिन्न भाषाओं के शब्दों के मेल से बने हैं; जैसे —
- तत्सम और तद्भव = चंद्रमुँही
- तत्सम और विदेशी = योजना कमीशन
- तद्भव और विदेशी = डाकखाना
- विदेशी और तत्सम = जिलाधीश
- तद्भव और तत्सम = बिजली यंत्र
- विदेशी और तद्भव = पॉकेटमार
समास के भेद
समास के निम्नलिखित चार प्रमुख भेद हैं :
- तत्पुरुष समास (द्विगु समास, कर्मधारय समास)
- बहुव्रीहि समास
- द्वंद्व समास
- अव्ययीभाव समास।
संस्कृत में द्विगु तथा कर्मधारय समास को अलग भेद माना गया है, लेकिन हिंदी में इनकी चर्चा तत्पुरुष समास के अंतर्गत ही की जाती है।
1. तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)
जहाँपूर्व पद विशेषण होने के कारण गौण तथाउत्तर पद विशेष्य होने के कारण प्रधान होता है, वहाँतत्पुरुष समास होता है। इस प्रकार तत्पुरुष समास में सदैव पूर्व पद ‘गौण’ तथा उत्तर पद ‘प्रधान’ होता है।
सामान्यतः तत्पुरुष समास दो प्रकार से बनते हैं :
(क) संज्ञा और संज्ञा के समास से; जैसे —
- युद्ध का क्षेत्र = युद्धक्षेत्र
- स्नान के लिए गृह – स्नानगृह
- घोड़े पर सवार = घुड़सवार
- दान में वीर = दानवीर
- देश का वासी = देशवासी
- राजा का कुमार = राजकुमार
अमचूर
अश्रुलाने वाली गैस
(ख) संज्ञा और क्रियामूलक शब्दों के समास से; जैसे —
- शरण में आगत = शरणागत
- हस्त द्वारा लिखित = हस्तलिखित
- पथ से भ्रष्ट = पथभ्रष्ट
- सूखे द्वारा पीड़ित = सूखापीड़ित
- आप पर बीती =आपबीती
- ग्राम को गत = ग्रामगत।
विशेष —
समस्तपद बनते समय विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है तथा इसके विपरीत समास विग्रह के अंतर्गत विभक्ति चिह्नों से, ‘पर’, ‘को’ आदि का प्रयोग किया जाता है।
संस्कृत से हिंदी में कुछ ऐसे समास भी आ गए हैं जिनमें कुछ विशिष्ट नियमों के कारण संस्कृत की विभक्तियों का लोप नहीं होता; जैसे —
- सर में उत्पन्न = सरसिज (कमल)
- युद्ध में (युद्धि) स्थिर (ष्ठिर) = युधिष्ठिर
- मृत्यु को जीतने वाला = मृत्युंजय (शिव)
- विश्व को भरने वाला = विश्वंभर (ईश्वर)।
अनेक बार दोनों पदों के मध्य आने वाला पूरा शब्द समूह परसर्ग की तरह लुप्त हो जाता है; जैसे —
- दहीबड़ा = दही में डूबा हुआ बड़ा,
- बैलगाड़ी = बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी,
- वनमानुष = वन में रहने वाला मानुष।
(ख) द्विगु समास — द्विगु समास में भी उत्तर पद ‘प्रधान’ होता है और विशेष्य होता है, जबकि पूर्व पद संख्यावाची विशेषण’ होता है। अर्थ की दृष्टि से यह समास समूहवाची होता है; जैसे —
सं०वि० | विशेष्य |
पंचवटी | पंच (पाँच) वट (वृक्षों) वाला स्थान |
तिराहा | ति (तीन) राहों का समूह |
शताब्दी | शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समूह |
चौमासा | चौ (चार) मासों का समूह |
2. बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)
बहुव्रीहि समास वहाँ होता है, जहाँ समस्त पद में आए दोनों ही पद गौण होते हैं तथा ये दोनों मिलकर किसी तीसरे पद के विषय में कुछ कहते हैं और यह तीसरा पद ही ‘प्रधान’ होता है। तीसरे प्रधान पद का ज्ञान संदर्भ से ही होता है। उदाहरण के लिए ‘नीलकंठ’ शब्द का विग्रह यदि नीला है कंठ जिसका (विशेषण और विशेष्य) के रूप में किया जाएगा तब तो यह कर्मधारय समास होगा, लेकिन यदि इसके विग्रह में ‘नील’ तथा ‘कंठ’ दोनों का अर्थ ‘नीला है कंठ जिसका’ अर्थात् ‘शिव’ के रूप में किया जाएगा तो यही शब्द बहुव्रीहि समास का उदाहरण हो जाएगा। इस अर्थ में ‘नील’ तथा ‘कंठ’ गौण हैं तथा प्रधान पद है ‘शिव’ । कुछ उदाहरण देखिए :
अष्टाध्यायी | आठ अध्यायों वाला | पाणिनि का व्याकरण |
दशानन | दश हैं आनन (मुख) जिसके | रावण |
त्रिलोचन | तीन हैं लोचन (नेत्र) जिसके | शिव |
चतुर्भुज | चार है भुजाएँ जिसकी | विष्णु |
सुलोचना | सुंदर हैं लोचन जिसके | वह स्त्री |
अंशुमाली | अंशु (किरणें) है माला जिसकी | सूर्य |
उदारहृदय | उदार है हृदय जिसका | व्यक्ति विशेष |
कमलनयन | कमल के समान हैं नयन जिसके | विष्णु |
इस प्रकार कर्मधारय तथा बहुव्रीहि समास में अंतर यही है कि कर्मधारय में पूर्व पद ‘गौण’ तथा उत्तर पद ‘प्रधान’ होता है, जबकि बहुव्रीहि में दोनों पद ‘गौण’ तथा कोई तीसरा पद ‘प्रधान’ होता है।
3. द्वंद्व समास (Dvandva Samas)
जिस समास में दोनों ही पद प्रधान होते हैं, कोई भी गौण नहीं होता उसे द्वंद्व (जोड़ा, युग्म) समास कहते हैं। इसमें दोनों पदों को जोड़ने वाले समुच्चयबोधक अव्यय का लोप हो जाता है; जैसे —
समस्तपद | विग्रह |
अन्न-जल | अन्न और जल |
अपना-पराया | अपना और पराया |
आचार-विचार | आचार और विचार |
आजकल | आज और कल |
आटा-दाल | आटा और दाल |
उल्टा-सीधा | उल्टा और सीधा |
ऊपर-नीचे | ऊपर और नीचे |
ऊँच-नीच | ऊँच और नीच |
खरा-खोटा | खरा तथा खोटा |
विशेष — कभी-कभी ‘और’ का विस्तृत अर्थ होता है और समान वस्तुओं के समूह का अर्थ प्रकट होने लगता है; जैसेनर-नारी (सभी लोग), बच्चे-बूढ़े आदि।
4. अव्ययीभाव समास (Avyayibhav Samas)
जिस समास में पूर्व-पद अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं; जैसे
समस्तपद | अव्यय | विग्रह |
प्रतिदिन | प्रति | दिन दिन |
यथाक्रम | यथा | क्रम के अनुसार |
यथाशक्ति | यथा | शक्ति के अनुसार |
आमरण | आ | मरण तक |
भरपेट | भर | पेटभर |
अनुरूप | अनु | रूप के योग्य |
बेखटके | बे (बिना) | बिना खटके के (आशंका के) |
विभिन्न समासों में अंतर
द्विगु समास और बहुव्रीहि समास में अंतर
द्विगु समास में समस्तपद का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद उसका विशेष्य, परंतु बहुव्रीहि समास में पूरा (समस्त) पद ही विशेषण का काम करता है। कुछ ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जिन्हें दोनों समासों के अंतर्गत रखा जा सकता है; जैसे — चतुर्भुज, चतुर्मुख, त्रिनेत्र आदि। यह इनके विग्रह करने पर निर्भर करता है कि ये द्विगु या बहुव्रीहि में से किस समास के उदाहरण माने जाएंगे जैसे —
(क) चतुभूर्ज — चार भुजाओं का समूह (द्विगु); चार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् विष्णु (बहुव्रीहि)
(ख) चतुर्मुख — चार मुखों का समूह (द्विगु); चार मुख हैं जिसके अर्थात् ब्रह्मा (बहुव्रीहि)
(ग) त्रिनेत्र — तीन नेत्रों का समूह (द्विगु); तीन नेत्र हैं जिसके अर्थात् शिव (बहुव्रीहि)
कर्मधारय समास और बहुव्रीहि समास में अंतर
समास के कुछ उदाहरण हैं जो कर्मधारय तथा बहुव्रीहि दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं। इन दोनों का अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना होगा। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। जैसे पीतांबर में पीत (विशेषण) और अंबर (विशेष्य) तथा कमलनयन में कमल (उपमेय) और नयन (उपमान)। परंतु बहुव्रीहि समास में समस्तपद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है तथा दोनों पदों के अर्थों से अलग अर्थ प्रकट होता है; जैसे — ऊपर के दोनों शब्दों को ही लें तो पीतांबर — (पीले) हैं अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण तथा कमलनयन — कमल के समान नयन हैं जिसके (विष्णु) विग्रह होता है। अत: ध्यान रखिए जहाँ दोनों में से कोई पद प्रधान नहीं होता तथा दोनों पदों से भिन्न कोई तीसरा अर्थ निकलता है, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। जब एक पद दूसरे का विशेषण या उपमान हो तो कर्मधारय समास होता है। कुछ उदाहरण देखिए :
दशानन — दस आनन (कर्मधारय) | दस मुख हैं जिसके — रावण (बहुव्रीहि) |
षडानन — छह आनन (कर्मधारय) | छह मुख हैं जिसके — कार्तिकेय (बहुव्रीहि) |
लंबोदर — लंबा है जो उदर (कर्मधारय) | लंबा है उदर (पेट) जिसका — गणेश (बहुव्रीहि) |
महात्मा — महान है जो आत्मा (कर्मधारय) | महान है आत्मा जिसकी (बहुव्रीहि) |
नीलकंठ — नीला है जो कंठ (कर्मधारय) | नीला कंठ है जिसका — शिव (बहुव्रीहि) |
घनश्याम — घन के समान श्याम (कर्मधारय) | घन के समान श्याम है जो — कृष्ण (बहुव्रीहि) |
कर्मधारय समास और द्विगु समास में अंतर
कर्मधारय समास में समस्तपद का एक पद गुणवाचक विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है, परंतु द्विगु में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है; जैसे —
परमानंद परम आनंद (कर्मधारय) | चतुर्वर्ण चार वर्ण (द्विगु) |
नीलांबर नीला अंबर (कर्मधारय) | त्रिफला तीन फलों का समूह (द्विगु) |
ध्यान देने योग्य
- परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक पदों का मेल समास कहलाता है।
- पदों के मेल से बना शब्द समस्त पद कहलाता है।
- सामासिक शब्द के पदों को अलग करने की प्रक्रिया समास-विग्रह कहलाती है।