Monday, March 20, 2023
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प्रदूषण : कारण और निवारण पर निबंध | Pollution Essay in Hindi

प्रदूषण : कारण और निवारण पर निबंध | Pollution Essay in Hindi

प्रदूषण : कारण और निवारण पर निबंध |Pradushan Par Nibandh | Pollution Essay in Hindi | प्रदूषण : कारण और निवारण पर निबंध | Pollution Essay in Hindi | Pradushan Par Nibandh

प्रदूषण : कारण और निवारण पर निबंध | Pollution Essay in Hindi

वह अवांछित तत्व जो किसी निकाय के संतुलन के प्रतिकूल हो और उसकी खराब दसा के लिए जिम्मेदार हो प्रदूषक तत्व कहलाते हैं तथा उनके द्वारा उत्पन्न विषम परिस्थितियां प्रदूषण कहलाती है। दूसरे शब्दों में हमारे द्वारा उत्पन्न वे अपशिष्ट पदार्थ जो पर्यावरण के पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर रहे हैं, प्रदूषक तत्व तथा उनके वातावरण में मिलने से उत्पन्न विभिन्न प्रकार के संकट की स्थिति प्रदूषण कहलाती है।

‘प्रदूषण’ शब्द का अर्थ है-वायुमंडल या वातावरण का दूषित होना। जीवन की यह कैसी विडंबना है कि जिस प्रकृति ने हमें शुद्ध जल, शुद्ध वायु, हरी-भरी धरती, शुद्ध पर्यावरण प्रदान किया उसे हमने अपने भौतिक सुख-साधनों की प्राप्ति के लिए अनेक कलकारखाने लगाकर दूषित कर दिया। आज हम जिस तरह के वातावरण में जी रहे हैं वह पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है और प्रदूषण की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। प्रदूषण की समस्या ने आज सारे विश्व के सामने विकराल रूप धारण कर लिया है और संसार के समस्त प्राणियों के स्वास्थ्य के आगे एक प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

प्रदूषण चार प्रकार का होता है —

  • वायु-प्रदूषण,
  • जल-प्रदूषण,
  • ध्वनि-प्रदूषण तथा
  • भूमि-प्रदूषण।

वायु-प्रदूषण,

बढ़ता हुआ औद्योगिकीकरण वायु प्रदूषण की वृद्धि में अहम् भूमिका निभा रहा है। जिस रफ्तार से कारखानों की बढ़ोतरी हुई है उसका वायुमंडल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। कारखानों की चिमनियों से चौबीसों घंटे निकलने वाले धुएँ ने सारे वातावरण को विषाक्त बना दिया है। इनके अलावा सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि भी वायु प्रदूषण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। इन वाहनों के धुएँ से निकलने वाली ‘कार्बन मोनोऑक्साइड गैस’ के कारण आज साँस और फेफड़ों की बीमारियों होना आम बात हो गई है। इधर बढ़ती हुई जनसंख्या, लोगों का काम की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर पलायन भी वायु प्रदूषण के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए वृक्षों और वनो को भी निरंतर काटा जा रहा है।

जल-प्रदूषण,

जल प्रदूषण आज की एक विकट समस्या है। कारखानों का दूषित जल, बचे हुए रसायन, कचरा सभी कुछ नालों के रास्ते नदिने में बहा दिया जाता है। इसके अलावा नदी-तालाबों में, लोगों का नहाना, कपड़े धोना, मल-मूत्र डालना, शवों की राख डालना, जानकी की गंदगी डालना ऐसे अवगुण हैं जिनके कारण जल प्रदूषित हो जाता है और इससे तरह तरह के रोग; जैसे- पीलिया, हैजा, पेचिश मलेरिया, डेंगू आदि फैलते हैं।

ध्वनि-प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण भी नगरों और महानगरों में मनुष्य के जीवन को तनावयुक्त बनाए रखने का एक प्रमुख कारण है। तेज आवाज का हमारी श्रवण शक्ति पर तो प्रभाव पड़ता ही है, हृदय रोग तथा रक्त चाप की बीमारियों का भी जन्म होता है। लोग दूसरों को सुविधा का ध्यान न रखते हुए रेडियो, टेपरिकार्डर, लाउड-स्पीकर को तेजी से बजा-बजा कर ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं।

भूमि-प्रदूषण

भूमि-प्रदूषण भी आज के वैज्ञानिक युग की देन है। उपज बढ़ाने के लिए आज लोग जमीन में न जाने कौन कौन सी रासायनिक खादें डालते हैं। ऐसी प्रदूषित भूमि से उत्पन्न होने वाला अनाज, सब्जियाँ, दालें आदि सभी प्रदूषित होती हैं। इनको खाने से लोगों में उदार संबंधी न जाने कितने प्रकार के रोग विकसित हो जाते हैं।

निवारण-सरकार तथा नागरिकों के कर्तव्य

पर्यावरण की सुरक्षा से ही प्रदूषण की समस्या को सुलझाया जा सकता है। वन-रोपण तथा वृक्ष लगाने से यह समस्या कम हो सकती है। जनसंख्या वृद्धि पर हमें अंकुश लगाना होगा। अणु, परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी होगी। रासायनिक पदार्थों का उपयोग कम करना होगा। शोर मचाने वाले यंत्रों, वाहनों पर नियंत्रण रखना होगा। यह प्रयास केवल एक व्यक्ति को ही नहीं बल्कि हम सबक मिलकर करना है ताकि युगों-युगों तक मानव का अस्तित्व बना रह सके।

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