नर-नारी एक समान पर निबंध | Nar Nari Ek Saman Par Nibandh
नर-नारी एक समान पर निबंध | Nar Nari Ek Saman par nibandh | Nar Nari Ek Saman par nibandh in Hindi | नर-नारी एक समान पर निबंध | Nar Nari Ek Saman par Hindi Essay | Essay on Nar Nari Ek Saman in Hindi
स्त्री और पुरुष समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। एक के बिना दूसरे का जीवन अधूरा है क्योंकि समाज-रूपी गाड़ी को सुचारु रूप से चलाने के लिए दोनों ही पहियों का स्वस्थ तथा सुदृढ़ होना आवश्यक है। यदि इनमें से एक भी पहिया दुर्बल या दोषपूर्ण हुआ तो समाज-रूपी गाड़ी के विकास का क्रम रुक जाएगा। नारी यदि गृहस्थ जीवन की पतवार है, तो पुरुष उसका खेवैया। गृहस्थ की सुखशांति, आनंद तथा उत्थान इन दोनों पर ही आधारित है। इन्हीं कारणों से भारतीय संस्कृति में नारी को गृह-लक्ष्मी, गृह-देवी, सहधर्मिणी, अर्धांगिनी आदि कहा गया है। मनु ने मनुस्मृति में लिखा है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
पुरातन युग में नारी को श्रद्धा तथा विश्वास का रूप समझा जाता था। वह किसी भी क्षेत्र में पुरुष से पीछे नहीं थी। यहाँ तक कि यज्ञ की सफलता के लिए स्त्री और पुरुष दोनों का उसमें समान रूप से भाग लेना आवश्यक माना जाता था। कुछ स्त्रियाँ तो रणभूमि में जाकर भी अपने पतियों की सहायता किया करती थीं। पृथ्वी की-सी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की-सी गंभीरत्ता, चंद्रमा की सी शीतलता, पर्वतों की-सी मानसिक उच्चता आदि गुणों के कारण नारी घर में तथा घर के बाहर भी सम्मान की अधिकारिणी थी। मैत्रेयी, शकुंतला, सीता, अनसूया, दमयंती, सावित्री, गार्गी आदि स्त्रियाँ इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।
समय ने पलटा खाया और मध्यकाल में मुसलमानों के आक्रमण के समय नारी की दशा दयनीय हो गई, जिसके कारण उसे घर की चारदीवारी के भीतर बंद होना पड़ा। वह केवल भोग-विलास की वस्तु बनकर रह गई तथा उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं रहा।
परिस्थितियों में पुनः परिवर्तन आया और राजा राममोहन राय, महर्षि दयानंद आदि अनेक समाज सुधारकों ने स्त्रियों की दशा को सुधारने तथा उन्हें समाज में पुनः प्रतिष्ठित करने का सफल प्रयत्न किया। सती प्रथा समाप्त हुई, बाल विवाह पर प्रतिबंध लगा, पुनर्विवाह और विधवा-विवाह के कानून बने । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो भारतीय नारी को वे सब अधिकार अनायास ही प्राप्त हो गए जिन्हें प्राप्त करने के लिए पाश्चात्य देशों को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा। आज उसे पुरुषों की भाँति सब अधिकार प्राप्त हैं।
वर्तमान युग की नारी ने अपनी बुद्धि, योग्यता तथा आत्मविश्वास से यह भली-भाँति सिद्ध कर दिया है कि आज वह ‘अबला’ नहीं ‘सबला’ है; परावलंबी नहीं, स्वावलंबी है; वह पुरुष के भोग की वस्तु नहीं, उसकी सहयोगिनी है। घर की चारदीवारी में बंद रहकर यातना सहने वाली मूकदर्शिका नहीं, सामाजिक जीवन की आधारशिला है।
आज जीवन के हर क्षेत्र में वह पुरुषों के साथ कार्यरत है-शिक्षा, राजनीति, चिकित्सा, विज्ञान, समाज-सेवा, व्यापार, उद्योगधंधे, प्रशासन, पुलिस, सेना आदि सभी विभागों और क्षेत्रों में उसने अपनी प्रतिभा से यह सिद्ध कर दिया है कि नर-नारी एक समान हैं। नारी के इन्हीं गुणों का मूल्यांकन करने के लिए सन 1975 का वर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष’ के रूप में मनाया गया था।
आज की नारी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक है, वह शिक्षित है तथा राजनीतिक दृष्टि से पुरुष के समकक्ष अधिकारों की अधिकारिणी है। नारी की क्षमता, योग्यता, विवेक तथा कार्य-कुशलता ने यह भली-भाँति सिद्ध कर दिया है कि नर और नारी एक समान हैं तथा नारी को किसी भी प्रकार से पुरुष से हीन और दुर्बल नहीं आंका जा सकता।