Monday, March 27, 2023
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मुड़ो प्रकृति की ओर पर निबंध | Mudo Prakriti ki aur Hindi Essay

मुड़ो प्रकृति की ओर पर निबंध | Mudo Prakriti ki aur Hindi Essay

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मुड़ो प्रकृति की ओर पर निबंध | Mudo Prakriti ki aur Hindi Essay

प्रकृति स्वभाव से प्राणियों की सहचरी रही है। प्रकृति का शुद्ध, सात्विक और संतुलित संसर्ग पाकर मनुष्य दीर्घायु पाने की कामना करता रहा है। प्रकृति-सौंदर्य ईश्वरीय सृष्टि की अलौकिक, अद्भुत, अनंत, असीम तथा विलक्षण कला है। प्रकृति-सौंदर्य वर्णनातीत है। पर्वतों की सुरम्य घाटियाँ, उनके हिममंडित शिखर, कल-कल बहती नदियाँ, झर-झर झरते झरने, फल-फूलों से लदे वृक्ष, भौति-भाँति के सुमन, विस्तृत हरियाली, आसमान में उड़ते भाँति-भाँति के पक्षी, सूर्योदय के समय आकाश में बिखरे स्वर्णिम जावक, सूर्यास्त के समय ढलते सूर्य की लाली, रात्रि में चमकते नक्षत्रगण, चाँदनी रात-भला किसका मन नहीं मोह लेते! प्रभात बेला में बाल अरुणोदय के समय उड़ते पक्षियों का कलरव, हरी दूब पर मुक्ता के समान चमकती ओस की बूंदें, शीतल मंद सुगंधित समीर तथा मानव-भात्र की कार्य में लगने का उपक्रम कितना आनंददायी है।

“उषा सुनहरे तीर बरसती, जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।”

अपने अहंकार, दंभ तथा अभिमान के कारण वह स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने लगा और प्रकृति के तत्वों भ जब से मनुष्य ने विज्ञान की शक्ति पाकर प्रकृति से छेड़छाड़ प्रारंभ की तथा उसका दोहन प्रारंभ किया, तभी से वह प्राकृतिक सुखों जी की कल्पना करने लगा। जब से उसने प्रकृति का आँचल छोड़ा और विज्ञान का दामन थामा, तभी से वह अपने विनाश की खाई स्वयं खोदने लगा। प्रकृति पर विजय के स्वप्न को साकार करने के लिए उसने अनेक आविष्कार किए और समझा कि प्रकृति को उसने अपने वश में कर लिया है। परंतु वह भूल गया कि मूक दिखाई देने वाली प्रकृति की वक्र-दृष्टि सर्वनाश का कारण बन सकती है। आज जिस प्रकार चारों ओर पर्यावरण प्रदूषण तथा प्राकृतिक असंतुलन का दौर चल रहा है, रोगों में वृद्धि होती जा रही है, उसका एकमात्र कारण मानव की प्रकृति से छेड़छाड़ है। वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण पर्वत-स्खलन, भू-क्षरण, बाढ़, बेमौसमी बरसात तथा पर्यावरण-प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण शहरों में रहने वाले लोगों का दम घुटता जा रहा है। औद्योगिक प्रगति तथा प्रकृति दूर होते जाने के कारण साँस लेने के लिए शुद्ध वायु का भी अभाव हो गया है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि मानव पुनः प्रकृति की ओर मुड़े, प्रकृति से पुनः सामंजस्य स्थापित करे तथा उसे अपनी सहचरी समझकर उसका सम्मान करे। विश्व के सभी देशों ने इसके परिप्रेक्ष्य में अपनी-अपनी मुहिम छेड़ दी है। आज विश्व भर में प्रदूषण से बचने तथा पर्यावरण की रक्षा का प्रयास किया जा रहा है। 5 जून को समूचे विश्व में पर्यावरण दिवस’ मनाया जाना इस बात का साक्षी है कि अब मानव ने प्रकृति के महत्त्व को स्वीकार लिया है तथा उसके संरक्षण के हर संभव प्रयास की ओर गंभीरता से विचार करने पर विवश हुआ है। विश्व के सभी देशों की समझ में आ गया है कि जिस प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का उन्होंने अभियान छेड़ा था, वह उनकी भूल थी। परंतु उन्हें उस भूल को सुधारकर अब प्रकृति की ओर मुड़ना है।

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