किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध | Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan Essay In Hindi
किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध | Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan par nibandh | Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan par nibandh in Hindi | किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध | Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan par Hindi Essay | Essay on Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan in Hindi
गत रविवार को हमारे विद्यालय और बाल भारती पब्लिक स्कूल के मध्य फुटबॉल का एक रोचक मैच हुआ। यह मैच हमारे विद्यालय के क्रीड़ा-क्षेत्र में खेला जाना था। लगभग तीन बजे दोनों टीमें मैदान में एकत्रित हुईं। मैदान के चारों ओर काफी दर्शक विद्यमान थे। सभी खिलाड़ी अपने-अपने गणवेश (ड्रेस) में थे और खेलने को तैयार थे।
ठीक चार बजे निर्णायक ने सीटी बजाई और दोनों टीमों के कप्तान क्रीड़ा-क्षेत्र के मध्य में आ गए। पहले निर्णायक ने सिक्का उछाला, टॉस हमारे विद्यालय ने जीता। हमारे विद्यालय की टीम ने दक्षिण की ओर का गोल सँभाला तथा बाल भारती पब्लिक स्कूल की टीम ने उत्तर की ओर का। दोनों टीमों के कप्तानों ने अपने-अपने खिलाड़ियों को यथास्थान खड़ा किया। दूसरी सीटी बजी, निर्णायक ने मध्य में खड़े होकर फुटबॉल उछाली और खेल आरंभ हो गया। बाल भारती पब्लिक स्कूल के खिलाड़ियों ने जमकर धावा बोलना शुरू किया और देखते-ही-देखते उन्होंने एक गोल कर दिया। हमारे विद्यालय के खिलाड़ी फुटबॉल को ले ही नहीं पा रहे थे। लगता था कि हमारा विद्यालय बुरी तरह हारेगा। तभी फुटबॉल हमारे गोल की ओर पहुँची। गोल-रक्षक ने उसे रोका और किक लगाई। फुटबॉल मध्य रेखा के पार पहुंची। तभी हमारे विद्यालय का कप्तान सुधांशु फुटबॉल लेकर बाल भारती के गोल की ओर बढ़ा। वह गोल के समीप पहुँचा ही था कि विपक्ष के खिलाड़ी ने उसे गलत तरह से रोका, जिस पर निर्णायक ने पेनल्टी कॉर्नर दिया। हमारे विद्यालय के लिए गोल उतारने का यह स्वर्णिम अवसर था। पेनल्टी कॉर्नर लेते समय सभी की दृष्टि हमारे विद्यालय के कप्तान पर थी, पर दुर्भाग्यवश यह अवसर बेकार गया। तभी मध्यांतर की सीटी बजी।
मध्यांतर में खिलाड़ियों ने कुछ फल खाए, पानी पिया और हमारे विद्यालय के प्रशिक्षक ने अपने खिलाड़ियों को नई रणनीति अपनाने की सलाह दी। निर्णायक की सीटी पुनः बजी। दोनों टीमों के खिलाड़ी मैदान में पहुँच गए तथा मैच पुनः प्रारंभ हो गया। मध्यांतर के बाद का खेल अत्यंत रोमांचक तथा संघर्षपूर्ण था। हमारे खिलाड़ी एक-दूसरे को पास देने लगे और विपक्ष पर बार-बार धावा बोलने लगे। वे गोल उतारने का पूरा प्रयास कर रहे थे, परंतु बाल भारती स्कूल के खिलाड़ी उनका हर प्रयास बेकार कर देते थे। वे लंबी-लंबी किक मारकर समय को बरबाद भी कर रहे थे। अचानक ही फुटबॉल हमारी टीम के रजनीश के पास आ गया। वह फुटबॉल लेकर तेजी से बढ़ा। विपक्ष के खिलाड़ियों ने उसे रोका, तो उसने करण को पास दे दिया। अब करण फुटबॉल लेकर बढ़ रहा था। उसने फिर सुधांशु को पास दे दिया। सुधांशु की जोरदार किक से फुटबॉल गोली की तरह विपक्ष के गोल में जा घुसी। मैदान तालियों, सीटियों तथा तरहतरह की चीखों से गूंज उठा। हमारे विद्यालय के खिलाड़ियों को मानो नया जीवन मिल गया। अब मैच में पुन: तेजी आ गई थी।
खेल समाप्त होने में केवल पाँच मिनट शेष थे, हमारी टीम का खिलाड़ी रमेश फुटबॉल लेकर तेजी से बढ़ा। उसने रवींद्र को पास दिया, रवींद्र ने मोहन को और मोहन ने पुन: सुधांशु को। विपक्ष के खिलाड़ी ने सुधांशु को रोकने का प्रयास किया, मगर उसका निशाना इतना सही था कि गेंद सीधी गोल में जा घुसी। सभी स्तब्ध रह गए। चारों ओर के दर्शक हर्ष-ध्वनि करने लगे। खेल पुनः आरंभ हुआ ही था कि निर्णायक ने लंबी सीटी बजाई और मैच समाप्त हो गया। हमारे कप्तान ने विपक्ष के कप्तान से हाथ मिलाया।
हमारे विद्यालय की टीम यह मैच जीत गई थी। सभी खिलाड़ी अपने प्रशंसकों के बीच घिर गए। प्रधानाचार्य, खेल-शिक्षक तथा अन्य आचार्यों ने उनकी पीठ थपथपाई। हमारे विद्यालय को ट्रॉफी मिली तथा बाल भारती पब्लिक स्कूल के खिलाड़ियों को भी पुरस्कार दिए गए। यह मैच अत्यंत रोचक तथा रोमांचक था।