Tuesday, March 21, 2023
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करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान पर निबंध | Karat Karat Abhyas Ke Jadmati Hot Sujan Par Nibandh

करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान पर निबंध | Karat Karat Abhyas Ke Jadmati Hot Sujan Par Nibandh

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करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान पर निबंध | Karat Karat Abhyas Ke Jadmati Hot Sujan Par Nibandh

“करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान ॥”

जीवन में उन्नति करने के लिए अनेक गुणों की आवश्यकता पड़ती है। इनमें अध्यवसाय तथा परिश्रम भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। लगातार अभ्यास से व्यक्ति कार्य को करने में निपुण हो जाता है। अभ्यास और परिश्रम के प्रभाव से मूर्ख भी बुद्धिमान तथा शक्तिहीन भी शक्तिशाली बन जाते हैं।

इतिहास में ऐसी अनेक गाथाएँ मिलेंगी, जो इस बात की साक्षी हैं कि परिश्रम के बल पर व्यक्ति असंभव को भी संभव कर सकता है। अर्जुन इतना महान धनुर्धर बना तो केवल परिश्रम एवं अभ्यास के बल पर, एकलव्य यदि अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्विद्या स्वयं सीख पाया तो केवल निरंतर अभ्यास के बल पर। इसी प्रकार अनेक वैज्ञानिक; जैसे मैडम क्यूरी, थॉमस अल्वा एडीसन, राइट बंधु आदि अपनी खोज करने में सफल हुए तो केवल अभ्यास के बल पर।

जो व्यक्ति अभ्यास नहीं करता, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकता। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि तपस्या के बल पर अनेक सिद्धियाँ तथा वरदान प्राप्त कर लिया करते थे। वह तपस्या भी एक प्रकार का अभ्यास ही था। अभ्यास के साथ-साथ परिश्रम, लगन एवं कर्मशीलता भी आवश्यक है। मानव-जीवन के क्षण सीमित हैं। जिसने इन क्षणों का सदुपयोग नहीं किया तथा अभ्यास के बल पर अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की, सफलता उससे कोसों दूर भागती नज़र आई। सौभाग्य तथा सफलता उसी व्यक्ति का वरण करती है जो परिश्रमी, उद्यमी, उत्साही तथा अभ्यास करने वाला है। महमूद गजनवी 16 बार युद्ध हारने के बाद भी प्रयत्नशील रहा और निरंतर अभ्यास करता रहा तथा अंत में सत्रहवीं बार वह अपने इरादों में कामयाब भी हो गया। महान वैज्ञानिक एडीसन से एक बार किसी ने पूछा-‘आपकी सफलता का कारण क्या आपकी प्रतिभा है ?’ एडीसन ने उत्तर दिया-‘नहीं, एक औंस बुद्धि और एक टन परिश्रम।’

विद्यार्थी के लिए तो अभ्यास की और भी अधिक आवश्यकता है। ज्ञान की प्राप्ति निरंतर अभ्यास से ही होती है। जो विद्यार्थी भाग्य पर विश्वास करते हैं तथा आलस्य के कारण परिश्रम से कतराते हैं, वे अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। खेल-कूद हो या संगीत, विद्याध्ययन हो या कला-कौशल, सब में अभ्यास की नितांत आवश्यकता पड़ती है। निरंतर अभ्यास से कार्यपटुता, दक्षता, प्रवीणता तथा परिपक्वता आती है। जिस प्रकार निरंतर व्यायाम करने से शरीर पुष्ट होता है, उसी प्रकार निरंतर अभ्यास करने से मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक उन्नति होती है।

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