Monday, March 20, 2023
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भारतीय कृषक पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi

भारतीय कृषक पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi

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भारतीय कृषक पर निबंध | Indian Farmer Essay in Hindi

भारत गाँवों का देश है। भारत का हृदय गाँवों में ही बसता है। गाँवों में ही परिश्रम और सेवा के अवतार-किसान बसते हैं, जो नगरवासियों के अन्नदाता ही नहीं सृष्टि के पालक भी हैं। भारतीय किसान कठोर परिश्रम’, सरल हृदय, त्याग और तपस्वी जीवन, सादगी, जैसे गुणों का पर्याय है। कड़कती सर्दी, चिलचिलाती धूप, घनघोर वर्षा, हाड़ कपा देने वाली सर्दी में भी वह एक तपस्वी की भाँति अपनी साधना में लीन रहता है। वह हर विपत्ति को चुपचाप सहन कर लेता है, अभावों में जीने की उसे आदत है, रूखा-सूखा खाकर वह अपना पेट भर लेता है, मोटा कपड़ा पहनकर वह अपना तन ढंक लेता है। अपने इस कठोर जीवन की वह न तो कभी किसी से शिकायत करता है तथा न ही स्वयं के लिए ऐश्वर्य एवं भोग-विलास की सामग्री की माँग। उसके जीवन का तो बस एक ही उद्देश्य है-मिट्टी से सोना उत्पन्न करना और अन्नपूर्णा की तरह दूसरों का पेट भरना।

एक बार नारद ने भगवान विष्णु से पूछा, “प्रभो। आपका परम भक्त कौन है?” विष्णु ने उत्तर दिया, “मेरा परम भक्त एक किसान है।” नारद जी ने इस भक्त के दर्शन करने का निश्चय किया। विष्णु जी ने उसने कहा कि उस परम भक्त के दर्शन करने जाते समय तुम्हें तेल से भरा एक पात्र अपने साथ ले जाना होगा। पर ध्यान रहे उस पात्र से एक बूंद तेल भी पृथ्वी पर नहीं गिरना चाहिए। नारद ने ऐसा ही किया। वे किसान के पास पहुँचे। उन्होंने किसान की दिनचर्या को देखा। किसान ने प्रात:काल खेत पर काम करने के लिए जाते समय ‘राम-राम’ शब्द का उच्चारण किया और एक बार वहाँ से आने के बाद। नारद को भगवान विष्णु की बात पर बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि किसान तो पूजा-पाठ भी नहीं करता था। खैर वे अपना तेल से भरा पात्र लेकर विष्णु जी के पास लौट आए और तेल का पात्र उनके हाथ में देते हुए बोले, “भगवन! आपकी आज्ञा के अनुसार मैंने इस पात्र में से एक भी बूंद नीचे नहीं गिरने दी। आपके परम भक्त किसान के दर्शन भी मैंने किए, पर उसने तो आपका नाम केवल दो बार ही लिया। आपके अनेक भक्त तो दिन-रात आपका स्मरण करते हैं, फिर यह किसान आपका परम भक्त कैसे हो गया?” विष्णु बोले, “वत्स! तुमने मार्ग में मेरा नाम कितनी बार लिया?” “एक बार भी नहीं” नारद ने बताया “मेरा ध्यान तो तेल के पात्र पर लगा हुआ था।” विष्णु जी ने समझाया, “तुमने शायद किसान के जीवन को नहीं देखा। वह दिन-रात कितना परिश्रम करता है। इतनी व्यस्त दिनचर्या होने पर भी उसने मेरे नाम का दो बार स्मरण किया, इसीलिए वह मुझे सर्वाधिक प्रिय है।”

भारतीय किसान की महानता का इससे बढ़कर क्या बखान किया जा सकता है। भारतीय किसान में हम विष्णु के दर्शन करते हैं। विष्णु भी संसार का पालन करते हैं और किसान भी। न उसमें सुख की लालसा है, न ऐश्वर्य की कामना। वह तो कर्मयोगी की तरह अपने कर्तव्य की पूर्ति में लगा रहता है।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हमारे नगरों का तो मानचित्र ही बदल गया है, पर भारत के अधिकांश गाँवों में आधुनिकता की लहर अभी नहीं आई है। इन गांवों के किसान पहले भी फटेहाल थे और आज भी फटेहाल हैं। नगरों का वैभव उसे आकृष्ट नहीं करता, कृषि ही उसका सब कुछ है।

भारतीय किसान अत्यंत सरल हृदय तो है ही, अपनी दुर्दशा के लिए किसी हद तक स्वयं भी जिम्मेदार है। बीसवीं सदी में आज भी वह भाग्यवादी है, अंधविश्वासों से घिरा है तथा परंपरावादी दृष्टिकोण का दामन थामे है। परिवार नियोजन के महत्त्व को वह नहीं मानता, अनेक सामाजिक एवं धार्मिक उत्सवों पर अपनी हैसियत से ज्यादा ख़र्च करके जीवन भर कर्ज के बोझ से दबा रहता है, अनेक प्रकार के झगड़ों में उलझने के कारण मुकदमेबाजी उसका पीछा नहीं छोड़ती। इन सभी कारणों से भारतीय किसान जीवन के अभावों से मुक्त नहीं हो पाया है।

हर्ष का विषय है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत सरकार तथा राज्य सरकारों ने किसान के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने के लिए कई कदम उठाए हैं। गाँवों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया है। गाँवों में खेती के नए उपकरण, बीज तथा उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, खेती की नई-नई तकनीक सिखाई जा रही है, गाँवों में सहकारी समितियों और बैंकों के माध्यम से कम ब्याज दर पर ऋण दिलवाकर कृषक को महाजन के चंगुल से छुड़ाया जा रहा है, किसान की फ़सल को सरकार उचित मूल्य पर ख़रीद रही है, खेती की उपज बढ़ाने के लिए अनेक उपाय भी किए गए हैं, जिनसे किसानों की दशा में सुधार आने लगा है।

फिर भी अभी बहुत कुछ करना शेष है, क्योंकि सरकारी सुविधाओं का लाभ केवल बड़े किसानों तक ही पहुँच पाया है। सरकार से आशा है कि वह छोटे तथा निर्धन कृषकों के जीवन स्तर में सुधार लाने की दिशा में गंभीरता से प्रयास करे, क्योंकि किसान की समृद्धि में ही भारत की समृद्धि है।

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