यदि मैं शिक्षा मंत्री होता पर निबंध | If I Were A Education Minister Essay in Hindi
यदि मैं शिक्षा मंत्री होता पर निबंध | If I Were A Education Minister par nibandh | If I Were A Education Minister par nibandh in Hindi | यदि मैं शिक्षा मंत्री होता पर निबंध | If I Were A Education Minister par Hindi Essay | Essay on If I Were A Education Minister in Hindi
विश्व-गुरु के सम्मान से सुशोभित, प्राचीन संस्कृति की गरिमा से मंडित भारतवर्ष में यदि आज किसी चीज़ की सर्वाधिक दुर्गति हो रही है, तो वह है-वर्तमान शिक्षा प्रणाली। वर्तमान शिक्षा प्रणाली की कमियों से आज सभी परिचित हैं। विद्यार्थी से लेकर राजनीतिज्ञों तक सभी सुधार की अपेक्षा करते हैं, परंतु गंभीरता से इस ओर प्रयास नहीं किया गया।
मैं एक विद्यार्थी हूँ। विद्याध्ययन करते समय मुझे भी वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोषों से अवगत होने का अवसर मिला। मैं मन मसोसकर रह गया क्योंकि शिक्षा में सुधार कर पाना न तो हमारे आचार्यों के हाथ में है, न ही विद्यालय अथवा कॉलेज के प्रधानाचार्यों के हाथ में। इसमें परिवर्तन किया जा सकता है, तो केवल सरकार द्वारा। आज शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन करके इसे अधिक व्यावहारिक, उपयोगी तथा रोजगारोन्मुख बनाने की आवश्यकता है।
मेरा यह मानना है कि किसी भी देश की प्रगति का आधार उस देश की शिक्षा प्रणाली है। यदि किसी देश के निवासी अशिक्षित हैं अथवा वहाँ शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है, तो अनेक प्रकार के धन-धान्य से पूर्ण होते हुए भी वह देश प्रगति की दौड़ में पीछे रह जाता है। यदि मैं शिक्षा मंत्री होता तो मेरा सबसे पहला कदम होता- शिक्षा को निःशुल्क तथा अनिवार्य करना। इसके लिए मैं शिक्षा विषय को केंद्र के अधीन रखता।
शिक्षा को केंद्र सूची में शामिल करने से संपूर्ण देश में एक ही प्रकार की शिक्षा-पद्धति लागू हो जाती। मेरा प्रयास रहता कि संपूर्ण भारत में त्रि-भाषा फार्मूला लागू किया जाए अर्थात् अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं का पढ़ना अनिवार्य हो तथा तीसरी भाषा उस राज्य की क्षेत्रीय भाषा हो। इससे राष्ट्रीय एकता पुष्ट होती तथा देश की सांस्कृतिक एकता में भी मदद मिलती।
मेरा प्रयास होता कि शिक्षण पद्धति तथा परीक्षा पद्धति में भी आवश्यक सुधार किए जाएँ। शिक्षण पद्धति में सुधार लाने के लिए यह प्रयास किया जाता कि शिक्षकों का प्रशिक्षण कम-से-कम दो वर्षों का अवश्य हो क्योंकि एक वर्ष के प्रशिक्षण में वे शिक्षण पद्धतियों आदि की जानकारी मात्र प्राप्त करते हैं। इसी एक वर्ष की अवधि में से दो महीने का ग्रीष्मावकाश, पंद्रह दिनों का शीतकालीन, दशहरा आदि का अवकाश यदि निकाल दिया जाए, तो शिक्षकों के प्रशिक्षण का समय 8-9 महीने ही बचता है जो अत्यंत कम है। इसके लिए शिक्षण के क्षेत्र में केवल समर्पित तथा इस विषय में रुचि रखने वाले लोगों को ही लिया जाता। ‘एप्टिट्यूड टैस्ट’ और ‘मनोवैज्ञानिक टैस्ट’ आदि की व्यवस्था की जाती। इन टैस्टों में उत्तीर्ण होने वाले व्यक्ति ही अध्यापक का प्रशिक्षण पा सकते। आजकल के अधिकांश अध्यापकों का उद्देश्य अपने कार्य के घंटों को पूरा करना तथा अधिक-से-अधिक ट्यूशन करके धनोपार्जन करना ही रह गया है।
मेरे विचार में वर्तमान शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा दोष है-उसकी परीक्षा प्रणाली। प्रायः हर वर्ष किसी-न-किसी विषय के प्रश्न-पत्र को लेकर हंगामे होते रहते हैं। कभी पाठ्यक्रम से बाहर के प्रश्न पूछ लिए जाते हैं, तो कभी प्रश्न-पत्र का स्तर इतना ऊँचा होता है कि लगता है वह विद्यार्थियों के लिए नहीं अपितु उन्हें पढ़ाने वाले आचार्यों के मूल्यांकन करने के लिए है। मैं ध्यान देता कि प्रश्न-पत्रों का निर्माण अत्यंत सावधानी से किया जाए, जिसमें जहाँ तक संभव हो संपूर्ण पाठ्यक्रम पर आधरित प्रश्नों का समावेश हो तथा कुछ आवश्यक प्रश्नों को रट-रटाकर पास होने वाली प्रवृत्ति रोकी जा सके। मैं प्रयास करता कि शिक्षा का उद्देश्य नैतिक मूल्यों का संवर्धन हो और व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया जाए। शिक्षा रोजगारोन्मुख हो तथा पाठ्यक्रम में ऐसे विषय अवश्य शामिल किए जाएँ, जिन्हें पढ़कर विद्यार्थी रोज़गार प्राप्त कर सकें।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि मुझे शिक्षा मंत्री बनने का सुअवसर मिला, तो मैं शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करके अपने उत्तरदायित्व का भली-भाँति वहन करूँगा।