Tuesday, March 28, 2023
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नैतिक पतन देश का पतन पर निबंध | Essay on Naitik Patan Desh Ka

नैतिक पतन देश का पतन पर निबंध | Essay on Naitik Patan Desh Ka

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नैतिक पतन देश का पतन पर निबंध | Essay on Naitik Patan Desh Ka

किसी ने सच ही कहा है कि यदि मनुष्य का चरित्र चला गया तो समझो उसका सब कुछ चला गया। मानव चरित्र को ही नैतिकता का पर्याय कहा जाता है। मनुष्य का यश, गुरु-गौरव, उसकी संपन्नता एवं मान-मर्यादा उसके चरित्र पर ही निर्भर करती है। सत्यवादिता, दयालुता, निष्कपटता, सदाचार, संतोष, पारस्परिक सहयोग-ये सभी नैतिकता के आधार-बिंदु हैं। अच्छा व्यवहार, परिश्रमशीलता, कर्तव्यनिष्ठा, समयनिष्ठा आदि गुण जिस व्यक्ति में होंगे, वह निश्चय ही नैतिकता की कसौटी पर खरा उतरेगा।

किसी भी राष्ट्र या समाज की उन्नति की आधारशिला वहाँ के निवासियों की सच्चरित्रता, परिश्रमशीलता अथवा उनके नैतिक मूल्य होते हैं। विश्व के जो देश आज उन्नति के चरमोत्कर्ष पर पहुँचे हुए हैं, उनकी उन्नति का आधार है-इन्हीं नैतिक मूल्यों में आस्था तथा जीवन में इन्हें उतारना। छोटे-से देश जापान का उदाहरण हमारे सामने है। द्वितीय विश्व युद्ध में सर्वनाश होने के बावजूद इस देश ने जो आशातीत प्रगति की है, उसका श्रेय वहाँ के निवासियों के नैतिक मूल्यों को ही दिया जाना चाहिए। जापानियों की समयनिष्ठा, परिश्रमशीलता, देश-भक्ति तथा ईमानदारी का कोई सानी नहीं है। इसके विपरीत, यदि आज हम अपने देश की राजनैतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि आज जिस प्रकार से चारों ओर भ्रष्टाचार, बेईमानी, रिश्वतखोरी, भाईभतीजावाद, सांप्रदायिकता तथा आलस्य आदि का बोलबाला है, उसी के कारण विश्व में हमारी छवि धूमिल हुई है।

कभी समय था जब हमारा देश सांस्कृतिक गुरु के पद पर आसीन था। विश्व-गुरु’ के पद से सम्मानित इसी देश ने समूचे विश्व को मानवता, नैतिकता, सच्चरित्रता तथा सदाचार की शिक्षा दी। करुणा, दया, परोपकार, कर्तव्यपरायणता, आत्म-संयम, इंद्रिय-दमन, सत्य भाषण जैसे अनेक नैतिक मूल्यों के कारण ही हम विश्व-गुरु के पद पर आसीन थे। अनेक पौराणिक तथा ऐतिहासिक आख्यान इस बात के साक्षी हैं । शनैः-शनैः जब देशवासियों में नैतिक मूल्यों का ह्रास प्रारंभ हुआ तो विदेशियों ने अपनी गिद्ध दृष्टि हम पर डाली और सैकड़ों वर्षों तक हमें दासता की श्रृंखला में जकड़े रखा। पराधीनता के इस लंबे इतिहास में हम अपने नैतिक मूल्यों को भूल बैठे तथा कायर बनकर दासता के अभिशाप को सहन करते रहे। वह देश, जो कभी विश्व के लिए प्रकाश-स्तंभ था, स्वयं अँधेरे के गर्त में डूबता गया। आज भी हमारे देश में जिधर देखिए उधर ही नैतिक मूल्यों की रिक्तता देखने को मिलती है। पश्चिम के अंधानुकरण के कारण हमारी संस्कृति के लुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है, हमारी कथनी और करनी में भारी अंतर आ गया है। नैतिक मूल्यों की चर्चा केवल पुस्तकों में, भाषणों में, गोष्ठियों में या वाद-विवादों में ही की जाती है। हम अपने प्राचीन आदर्शों को भूलते जा रहे हैं जिसके कारण हम स्वयं ही अपने बल, बुद्धि और वैभव को अपने हाथों से खो बैठे हैं तथा हमारा समाज पतन के गर्त में गिरता जा रहा है।

हम अपने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा अन्य समस्याओं के लिए कभी तो नेताओं पर दोषारोपण करते हैं, तो कभी पुलिस विभाग पर, तो कभी अन्य अधिकारियों पर । क्या हमने कभी यह सोचा है कि ये अधिकारी अथवा नेता कहाँ से आते हैं ? क्या ये समाज का हिस्सा नहीं हैं ? क्या ये समाज का प्रतिबिंब प्रस्तुत नहीं करते हैं ? आज हमारे देश के पतन का एकमात्र कारण है-जीवन-मूल्यों की रिक्तता अथवा नैतिक मूल्यों की हीनता। आज हम आपाधापी में लगे हुए हैं। आज चारों ओर स्वार्थ, ईर्ष्या, अहंकार, लोभ, व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना और बेईमानी का बोलबाला है। यदि देश का हर व्यक्ति नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में उतार लेगा, तो वह दिन दूर नहीं जब हम पुनः विश्व में सिरमौर बन जाएंगे।

अत: स्पष्ट है कि नैतिक पतन ही देश के पतन का मुख्य कारण है तथा नैतिक उन्नति ही देश की उन्नति की आधारशिला। हमारा कर्तव्य है कि हम एकजुट होकर, कृतसंकल्प होकर, निष्ठा से, ईमानदारी से नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में उतारने का बीड़ा उठाएँ और देश की अखंडता तथा एकता की रक्षा करके उसे सिरमौर बनाने का प्रयत्न करें। हमें महाकवि निराला की ये पंक्तियाँ स्मरण रखनी चाहिए :

“पद रज भी नहीं है, पूरा यह विश्व भार।
जागो फिर एक बार ॥”

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