Monday, March 20, 2023
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माँ और मातृभूमि स्वर्ग से महान है पर निबंध | Essay On Mathrubhumi In Hindi

माँ और मातृभूमि स्वर्ग से महान है पर निबंध | Essay On Mathrubhumi In Hindi

माँ और मातृभूमि स्वर्ग से महान है पर निबंध | Mathrubhumi par nibandh | Mathrubhumi par nibandh in Hindi | माँ और मातृभूमि स्वर्ग से महान है पर निबंध | Mathrubhumi par Hindi Essay | Essay on Mathrubhumi in Hindi

माँ और मातृभूमि स्वर्ग से महान है पर निबंध | Essay On Mathrubhumi In Hindi

जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रस धार नहीं।
वह हदय नहीं, वह पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

दोनों में समानता

जननी और जन्मभूमि दोनों ही महान हैं। माता यदि हमें जन्म देती है तो मातृभूमि अपने अन्न-जल से हमारा पालन-पोषण करती है। हमारी संस्कृति में तो ईश्वर को भी त्वमेव माता’ कहकर संबोधित किया गया है तथा साथ ही ‘माता गुरुणां गुरु’ कहकर उसकी महिमा का बखान किया गया है। माता के ऋण से उऋण होना संभव नहीं। उसकी ममता, करुणा, वात्सल्य, औदार्य, सहिष्णुता, स्नेह, आदि का बदला नहीं चुकाया जा सकता। जिस प्रकार माता अपनी संतान का पालन-पोषण करती है, स्वयं कष्ट उठाकर उसे सभी प्रकार के सुख पहुँचाने के लिए प्रयासरत रहती है, उसे हर प्रकार से सुखी, फलता-फूलता देखने को आतुर रहती है, उसी प्रकार धरती भी माता के समान उसकी देखभाल करती है। जन्मभूमि भी माँ के सदृश ही तो है। उसकी वायु, अन्न, जल, फल-फूल तथा वनस्पतियों के अभाव में जीवित नहीं रहा जा सकता। उसकी रज में लोट-लोट कर हम बड़े होते हैं, उसके धरातल पर चलना सीखते हैं तथा उसी पर आश्रय पाते हैं।

सुरों-असुरों द्वारा भी माँ का गुणगान

लंका की समृद्धि और सौंदर्य को देखकर लक्ष्मण ने श्री राम से कहा ‘हे भ्राता जी, क्यों न हम इस स्वर्णभूमि लंका को ही अपनी राजधानी बना लें?’ लक्ष्मण की बात सुनकर श्रीराम ने उत्तर दिया था — अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।। हे लक्ष्मण! लंका चाहे स्वर्णमयी ही क्यों न हो, मुझे रुचति नहीं, क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती हैं।’ जननी ही हमें जन्म देती है इसलिए उसका पद सर्वोच्च है। साथ ही जन्मभूमि हमें के लिए हर प्रकार का आधार प्रदान करती है, इसलिए उसका महत्त्व भी कम नहीं।

माँ की महिमा का गान तो सुर-असुर सभी ने किया है। देवताओं पर भी जब संकट आता है, तो वे भगवती दुर्गा, काली आदि का ही स्मरण करते हैं। उनकी पुकार सुनकर माँ भगवती दुष्टों का संहार करती है। माँ बालक की प्रथम शिक्षिका भी होती है तथा उसी के संरक्षण में बालक बोलना, चलना-फिरना, आदि सीखता है। शिवाजी को उसकी माता जीजाबाई ने ही शूरवीरता, शौर्य, बलिदान तथा देशप्रेम का पहला पाठ पढ़ाया था। गांधी जी पर उनकी माता का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा था, इसी प्रकार के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं।

मातृभूमि के मनुष्य पर उपकार

माता के समान मातृभूमि के भी मनुष्य पर अनेक उपकार हैं। अनेक कवियों ने मातृभूमि की वंदना में अपनी लेखनी उठाई है। मैथिलीशरण गुप्त ने मातृभूमि को क्षमामयी, दयामयी, क्षेममयी, प्रेममयी, विभवशालिनी, शरणदायिनी, भयनिवारिणी तथा विश्वपालिनी कहकर संबोधित किया है। इसलिए प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर रहे तथा जीवन पर्यंत उसकी उन्नति के लिए प्रयत्नशील रहे। मातृभूमि के मान की रक्षा में अपने को बलिदान करने में जो परमानंद प्राप्त होता है, उसका मूल्य तो कोई सच्चा देशभक्त ही आँक सकता है। छोटे-छोटे जीव-जंतु, पशु-पक्षी भी अपने जन्म-स्थान से प्रेम करते हैं फिर मनुष्य तो चेतन प्राणी है, उसमें तो स्वदेश प्रेम की भावना होनी ही चाहिए। स्वदेश प्रेम की भावना से ही मनुष्य का विकास होता है —

देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है अमल असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से जिसमें मनुष्यता होती है विकसित।।

दोनों के प्रति हमारा कर्तव्य

जननी और जन्मभूमि दोनों का महत्त्व एक सच्चा सपूत ही जान सकता है। माता शिशु को नौ मास अपने गर्भ में रखकर जन्म देती है, तो जन्मभूमि उसे शरीर के पाँचों तत्व प्रदान करती है-पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश। मृत्यु होने पर मातृभूमि ही मानव के पार्थिव शरीर को अपने में विलीन कर लेती है। अतः ‘जननी’ और ‘जन्मभूमि’ दोनों का ही महत्त्व है। हमें दोनों को मान-मर्यादा की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

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