बाढ़ का दृश्य पर निबंध | Essay on Flood in Hindi
बाढ़ का दृश्य पर निबंध | Flood par nibandh | Flood par nibandh in Hindi | बाढ़ का दृश्य पर निबंध | Flood par Hindi Essay | Essay on Flood in Hindi
मनुष्य आदिकाल से ही प्रकृति के साथ संघर्ष करता आया है तथा आज भी कर रहा है। अपनी बौद्धिक क्षमता के कारण उसे अनेक क्षेत्रों में सफलता भी मिली है तथा प्रकृति पर उसका अधिकार है, परंतु प्रकृति पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सपना वह कभी पूरा नहीं कर पाया। यह संभव भी नहीं है, क्योंकि प्रकृति अजेय है। प्रकृति के अनेक रहस्य मानव की समझ से बाहर हैं। प्रकृति की लीला भी अद्भुत एवं विस्मयकारी है। प्रसन्न होने पर यदि प्रकृति आनंद का स्रोत प्रवाहित करती है, चारों ओर उल्लास एवं ताजगी बिखेरती है, तो कुपित होने पर विनाश का तांडव भी करती है जिसके कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाती है। बाढ़’ भी प्रकृति का ऐसा ही प्रकोप है जो मानो प्रकृति के क्रोध का परिचायक है। बाढ़ आने पर अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने वाला मानव कुछ नहीं कर पाता तथा मूकदर्शक बनकर प्रकृति की विनाश लीला को विवशतापूर्ण नेत्रों से निहारता रहता है।
मुझे आज भी वह भयानक दिन याद है जब मैंने बाढ़ का भयानक दृश्य देखा था। कई दिनों से तेज वर्षा हो रही थी जिसके कारण चारों ओर जल-ही-जल दिखाई दे रहा था। अचानक यह सुना कि यमुना का पानी खतरे के निशान से ऊपर चढ़ गया है तथा गाँव से कुछ ही दूर पर है। पूरे गाँव में हा-हाकार मच गया। लोग अपना-अपना सामान लेकर सुरक्षित स्थानों की ओर भागने लगे। धनी लोग तो अपने वाहनों से आस-पास के गाँवों में चले गए, मगर निर्धन परिवारों को गाँव के बाहर एक टीले पर ही शरण लेनी पड़ी।
देखते-ही-देखते यमुना का पानी गाँव में भरने लगा। पानी का प्रवाह बहुत तेज था। उसमें पेड़-पौधे बह-बहकर आ रहे थे। लोगों के घरों में पानी भर गया। लोगों का सामान पानी में बह-बहकर बाहर आ गया। लोग अपने सामान की दुर्दशा को देखकर चीत्कार कर उठे। कुछ लोग अपने मकानों की छतों पर इस आशा से बैठे रहे कि जल्दी ही बाढ़ का पानी उतर जाएगा और वे नीचे उतर आएँगे, मगर पानी तो बढ़ता ही जा रहा था। कुछ पशु भी पानी में बह गए।
बाढ़ भयंकर विनाशलीला ढा रही थी। धीरे-धीरे कच्चे मकान भी गिरने शुरू हो गए। चारों ओर जल-ही-जल दिखाई दे रहा था। लोग भूखे-प्यासे थे। कुछ टीले पर बैले कातर नेत्रों से प्रकृति की विनाशलीला को निहार रहे थे, तो कुछ अश्रुपूर्ण नेत्रों से भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। पानी के तेज बहाव के कारण किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे अपने सामान की रक्षा कर सकें। जिस सामान को बनाने में उन्होंने परिश्रम से कमाई धन राशि खर्च की थी, आज वही पानी की भेंट चढ़ चुका था। सब प्रकार की गंदगी बहकर आने के कारण चारों ओर दुर्गंध भी फैल रही थी। हजारों लोग बेघर बार हो गए थे। मलेरिया, हैजा, जैसी बीमारियाँ फैलने का भी पूरा खतरा बना हुआ था।
कल तक जहाँ लहलहाती फसलें खड़ी थी, वहाँ आज जल-ही-जल दृष्टिगोचर हो रहा था। खड़ी फसल पूरी तरह नष्ट हो गई थीं। भूख और प्यास के मारे लोगों का बुरा हाल था। यह स्थिति दो दिन तक रही। तीसरे दिन पानी का प्रवाह कम होता गया और पानी उतरने लगा। लोग-बाग टीले से उत्तरकर नीचे आए, मगर उनके घर तो बाढ़ की भेंट चढ़ चुके थे। अब समस्या थी कि वे कहाँ रहे? तीन दिन बाद सरकार की ओर से सहायता शिविर लगाए जाने लगे तथा अनेक लोगों को उनमें शरण लेनी पड़ी।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दृश्य तो उस समय देखने को मिला, जब कुछ असामाजिक तत्वों ने बेचारे बाढ़ पीड़ितों का बचा खुचा माल भी साफ करना शुरू कर दिया। गाँव के अधिकांश बच्चों को उलटी दस्त की बीमारी लग गई। यदि समय पर सरकारी सहायता न आती तो उनमें से अनेक अपने प्राणों से ही हाथ धो बैठते।
अनेक समाजसेवी संस्थाओं ने इस अवसर पर दिल खोलकर सहायता प्रदान की। उनकी ओर से दवाइयाँ, खाने-पीने का सामान तथा कपड़े आदि वितरित किए गए। सभी को बिस्तरे और कंबल आदि बाँटे गए। सेना के जवान तथा स्वयंसेवक नावों में बैठ-बैठकर लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के कार्य में जुटे हुए थे, तो दूसरा दल उनके भोजन, आवास एवं चिकित्सा की सुविधाएँ जुटाने में संलग्न था।
लगभग आठ दिन बाद बाढ़ का पानी उतर गया, पर पूरा पानी सूखने में कई महीने लग गए। लाखों रुपये की संपत्ति नष्ट हुई। सरकार ने किसानों को मकान बनाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की।
मैं बाढ़ के इस दृश्य को कभी नहीं भूल पाऊँगा।