फैशन का भूत पर निबंध | Essay on fashion ka bhoot in hindi
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नित नए-नए परिधानों से सजना, यानी दिखावा और आकर्षण फ़ैशन के अनिवार्य लक्षण हैं । फैशन किया ही इसलिए जाता है कि लोग उसे देखें और चमत्कृत हों। वस्तुत: अपने-आप को आकर्षक बनाने की चाह मनुष्य की एक स्वाभाविक वृत्ति है। इसी चाह का विस्तार व प्रकाशन कलात्मक वेशभूषा, केश-सज्जा तथा आभूषणप्रियता में देखने को मिलता है।
फैशन मर्यादा में रहे, व्यर्थ उत्तेजना न पैदा करे, तो वह सराहनीय है, तब वह कलाकारों, कवियों और चित्रकारों के कला-बोध और समाज के सौंदर्य-बोध का एक प्रभावी अंग है, किंतु यदि फ़ैशन केवल प्रदर्शन बन जाए और देशकाल के अनुकूल न हो, तो वह एक चिपटे हुए प्रेत की तरह अमंगलकारी हो जाता है।
फैशन के भूत का एक पक्ष यह भी है कि आधुनिकता के नाम पर हर पुरानी चीज़ को नकारना, चाहे वह कितनी ही उपयोगी क्यों न हो। भले ही इसमें जग-हँसाई की नौबत क्यों न आए पर आधुनिक कहे जाने का झूठा गर्व तो अनुभव होता ही है। जहाँ तक फैशन की रफ्तार का संबंध है, तो जो लिबास आज नए फैशन का होता है वह कल तक पुराना और दिनातीत हो जाता है।
फैशन को भूत की सीमा तक खींचने-बढ़ाने में आज की फ़िल्में, फ़िल्मी पत्रिकाएँ। टी०वी० और बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थान लगे हुए हैं। जिधर देखो फैशन-शो का आयोजन हो रहा है। युवा विद्यार्थी वर्ग में इन फैशन-शो का बड़ा चाव पैदा हो रहा है।
यह एक प्रकार का मीठा जहर है, जो नई पीढ़ी के लिए बड़ा विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। फैशन करो, किंतु उसके शिकार न बनो, उसे भूत की तरह सिर न चढ़ाओ। युवा पीढ़ी के लिए समय का यह तकाजा है। हमारी युवा पीढ़ी आज फैशन की होड़ में अपने संस्कार, सभ्यता एवं अपनी संस्कृति को भूलती जा रही है। वास्तव में वह इस अंधी दौड़ में बिना किसी लक्ष्य, बिना किसी मंजिल के दौड़ रही है। अगर समय रहते वह नहीं जागी तो आगे चलकर होने वाले दुष्परिणामों के लिए वह स्वयं दोषी होगी।