बस दुर्घटना पर निबंध | Bus Accident Essay in Hindi
बस दुर्घटना पर निबंध | Bus Accident par nibandh | Bus Accident par nibandh in Hindi | बस दुर्घटना पर निबंध | Bus Accident par Hindi Essay | Essay on Bus Accident in Hindi
भूमिका
विद्यालय जाने के लिए सुबह-सुबह बच्चों को बस में चढ़ा दिया जाता है और माँ-बाप निश्चित हो चैन की साँस लेते हैं। पर यदि भीड़ भरी सड़कों पर दौड़ते हुए स्कूल की बस दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तब “”
दुर्घटना कैसे और कहाँ
पिछले दिनों ऐसी ही एक दुखद घटना हमारे विद्यालय की बस के साथ भी हो गई। सब लोग बस में बैठ चुके थे और बस तेजी से आगे बढ़ रही थी। तभी अचानक एक तेज आवाज हुई, एक तेज झटका लगा और बस असंतुलित होकर इधर-उधर टकराती हुई आखिर में एक पेड़ से टकराकर रुक गई। बस के ब्रेक खराब हो गए थे और वह आस-पास के वाहनों-दो स्कूटरों, एक कार और एक छोटी बस को टक्कर मारने के बाद पेड़ से टकराई थी।
भयंकर दृश्य
ड्राइवर के सिर पर चोट लगने के कारण वह बेहोश हो गया था। उसके सिर से खून की धार बह रही थी। वो कहते हैं न ‘जाको राखे साईया मार सके न कोय’ यह उक्ति यहाँ बिल्कुल सटीक बैठी, क्योंकि अगर वह पेड़ नहीं होता तो शायद बस में मौजूद कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचता। चारों तरफ अफरा-तफरी मची हुई थी। सभी बच्चे चीख-चिल्ला रहे थे, छोटे बच्चे बहुत ज्यादा परेशान थे।
धक्का लगने से लगभग सभी अपनी-अपनी आगे वाली सीट से टकरा गए थे। कुछ गिर भी गए थे, मगर भगवान का बहुत-बहुत धन्यवाद कि किसी को भी ज्यादा चोट नहीं आई थी। अन्य वाहनों के चालक भी घायल थे। छोटी बस में यात्री कम थे, उन्हें गंभीर चोटें नहीं आई थीं। कार के चालक ने भी अपने को संभाल लिया था, पर दोनों स्कूटर सवार बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
सहायता कार्य
एक छोटी-सी लड़की जो पहली कक्षा में थी इतनी सहम गई थी कि अध्यापिका जी से चिपक गई थी और लगातार सुबक रही थी। मेरे हाथ में चोट लगी थी, शायद हड्डी टूट गई थी और दाँतों के बीच में आने से जीभ कट गई थी।
पुलिस तुरंत ही दुर्घटना स्थल पर पहुँच गई। स्कूली बच्चों की बस देखकर कई व्यक्ति रुक गए और सहायता कार्य में लग गए। दुर्घटना की खबर बच्चों के घरों तक भी पहुँच गई और सब अभिभावक दुर्घटना स्थल पर पहुँचना शुरू हो गए। हम में से ज्यादातर को प्राथमिक चिकित्सा के उपरांत घर भेज दिया गया। कुछ बहादुर बच्चे भी थे जो यह झेलने के बाद भी विद्यालय पहुँच गए।
इतना समय बीत जाने के बाद भी यह दृश्य मेरे स्मृति पटल पर अब भी ज्यों-का-त्यों अंकित है। बच्चों की चीख-पुकार मुझे आज भी सुनाई देती है और बार-बार मेरा दिल दहल जाता है। मैं उस घटना को भूलना चाहता हूँ, पर लाख कोशिश के बाद भी भूला नहीं पाता हूँ। भविष्य में ऐसी दुर्घनाएँ दुबारा न हों, इस बात पर विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक है। सर्वप्रथम उन कारणों को जानना ज़रूरी है जिन कारणों से ये दुर्घटनाएँ होती हैं। समय-समय पर स्कूल बसों की सर्विसिंग करवानी चाहिए और स्कूल बसों के लिए एक निर्धारित गति-सीमा का प्रावधान होना चाहिए ताकि अभिभावक सुबह अपने बच्चों को स्कूल भेजते समय इसके लिए निश्चित रहें कि उनके बच्चे सही सलामत घर लौटेंगे।