Tuesday, March 21, 2023
HomeHindi Essayभाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध | Bhagya Aur Purusharth Par Nibandh

भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध | Bhagya Aur Purusharth Par Nibandh

भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध | Bhagya Aur Purusharth Par Nibandh

भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध | Bhagya Aur Purusharth par nibandh | Bhagya Aur Purusharth par nibandh in Hindi | भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध | Bhagya Aur Purusharth par Hindi Essay | Essay on Bhagya Aur Purusharth in Hindi

भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध | Bhagya Aur Purusharth Par Nibandh

“उद्योगिनं पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मी।
दैवेन देयमिति का पुरुषाः वदन्ति ॥”

पुरुषों में सिंह के समान उद्योगी पुरुष को ही लक्ष्मी प्राप्त होती है। देव देगा’-ऐसा कायर पुरुष कहा करते हैं । उद्योगी पुरुष सचमुच पुरुष-सिंह होता है । लक्ष्मी उसी का वरण करती है।

संसार में व्यक्तियों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-कर्मवीर और कर्मभीरु। कर्मवीर या पुरुषार्थी मनुष्य अनेक प्रकार की बाधाओं, मुसीबतों, संघर्षों और असफलताओं का साहस एवं दृढ़ता से मुकाबला करता हुआ अपने गंतव्य को प्राप्त करने में सफल होता है, परंतु कर्मभीरु न केवल परिश्रम से दूर भागता है, अपितु कायर की भाँति वक्त के थपेड़ों को खाता हुआ निराशा के गर्त में गिर जाता है। ऐसा व्यक्ति भाग्यवादी कहलाता है। इसके विपरीत अपनी समस्त शक्तियों द्वारा परिश्रम करना ही पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी बेकार है। कोई भी कार्य केवल मनोरथ करने से पूर्ण नहीं होता, उद्यम से ही पूर्ण होता है। केवल आलसी तथा कायर व्यक्ति ही कहा करते हैं

अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।

भाग्यवादी मानते हैं कि व्यक्तियों को जो कुछ प्राप्त होता है, उनके भाग्य के अनुसार ही मिलता है । वे तो कहते हैं-“कर्म गति टारे नाहीं टरे”। भाग्य के अनुसार ही सत्यवादी हरिशचंद्र को नीच के हाथ बिकना पड़ा और श्मशान में नीच काम करना पड़ा। भाग्य के कारण ही श्रीराम जैसे प्रतापी को जंगलों की खाक छाननी पड़ी, भाग्य के लिखे के कारण ही पांडवों को वर्षों तक अपमान और कष्टपूर्ण जीवन बिताना पड़ा। इसलिए कुछ लोगों का यह दृढ़ विश्वास है कि भाग्य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता। भाग्यवादी मनुष्य आलसी, निकम्मा और परावलंबी होता है, वह अपने परिवार, समाज तथा देश के लिए कलंक है। इसके विपरीत जो व्यक्ति पुरुषार्थ का दामन थामे रहते हैं, सफलता उनका वरण करती है।

इतिहास साक्षी है कि जो लोग भाग्य के भरोसे न बैठे रहकर पुरुषार्थ करते हैं, वे ही समय पर शासन करते हैं। यदि अब्राहम लिंकन भाग्य के भरोसे बैठा रहता, तो अपने पिता के साथ जीवन भर लकड़ियाँ काट-काटकर गुजारा करने पर विवश हो जाता। लेकिन ‘पुरुषार्थ’ के पक्षधर मानते हैं कि व्यक्ति अपने परिश्रम और दृढ़ संकल्प से भाग्य को बदल सकता है। आज मानव ने जो अनेक चमत्कारी आविष्कार किए हैं, वे मानव के पुरुषार्थ के ही प्रतिफल हैं। यदि मानव भाग्य के भरोसे बैठा रहता तो वह अभी तक पाषाण युग में ही विचरण कर रहा होता।

गीता का संदेश है — कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन — इसका आशय भी पुरुषार्थ को प्रेरणा देना है। मानव जीवन के चारों उद्देश्य-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष भी पुरुषार्थ से ही प्राप्त होते हैं, भाग्य से नहीं। अतः स्पष्ट है कि पुरुषार्थ किए बिना भाग्य का निर्माण भी नहीं होता। तुलसीदास जी ने कहा है :

“कर्म प्रधान विश्व रचि राखा । जो जस करहि सो तस फल चाखा।’

भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि पूर्व जन्म में किया हुआ कर्म ही भाग्य कहलाता है। अतः कर्म का मार्ग ही सर्वोत्तम है। कर्म का मार्ग पुरुषार्थ का मार्ग है। पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी किसी को कुछ नहीं दे सकता।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments