बेकारी की समस्या पर निबंध | Bekari ki Samasya Par Nibandh
बेकारी की समस्या पर निबंध | Bekari ki Samasya par nibandh | Bekari ki Samasya par nibandh in Hindi | बेकारी की समस्या पर निबंध | Bekari ki Samasya par Hindi Essay | Essay on Bekari ki Samasya in Hindi
बेकारी की समस्या पर कैसे काबू पाया जाए ?-इस संबंध में विचार करने से पूर्व इसके कारणों पर विचार अपेक्षित है।
भारत की 60 प्रतिशत से भी अधिक जनता गाँवों में रहती है । अंग्रेजी शासन से पूर्व भारत में ग्रामोद्योगों की स्थिति अच्छी थी। ग्रामोद्योगों के नष्ट होने का कारण यह बना कि अंग्रेज भारत से कच्चा माल ले जाकर उसे अपने कारखानों में तैयार करके भारत में उपयोग के लिए भेजने लगे। इस प्रकार उनका देश तो सुख-समृद्धि को प्राप्त करने लगा तथा हम शोषण का शिकार होने के कारण आर्थिक दृष्टि से पंगु होने लगे और, इसके साथ ही देश में असंख्य कारीगरों को अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ा। वर्तमान दूषित शिक्षा पद्धति बेकारी का प्रमुख कारण है। अंग्रेजों ने इस शिक्षा पद्धति की शुरुआत इसलिए की थी कि वे इसके द्वारा कुछ पढ़े-लिखे क्लर्क प्राप्त कर सकें। खेद का विषय है कि वही शिक्षा पद्धति आज तक क्लर्कों की भीड़ के सिवाय कुछ उत्पन्न नहीं कर सकी। आज के नौजवान हाथ का काम करने में अपनी हेठी समझते हैं। देश की निरंतर बढ़ती जनसंख्या बेरोजगारी का सर्वप्रमुख कारण है। सरकार की ओर से जो रोजगार प्रदान किए जाते हैं, वे तेजी से बढ़ती जनसंख्या के सामने नगण्य हो जाते हैं।
देश की बेकारी दूर करने के लिए कृषि का समुचित विकास आवश्यक है। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण, उन्नत बीज, उत्तम खाद तथा कृषि यंत्रों का प्रबंध और सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार आवश्यक है। हर्ष का विषय है कि हमारी सरकार इस दिशा में प्रयत्नशील है तथा हमने कृषि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। बेकारी के निवारण के लिए देश का औद्योगिक विकास भी आवश्यक है। हमारे देश में कृषि और औद्योगिक उत्पादन के लिए असीम संभावनाएँ हैं। श्री एम०एल० डार्लिंग ने हमारे देश के संबंध में कहा है-“भारत के विषय में सबसे रोचक तथ्य यह है कि उसकी मिट्टी धनी है किंतु उसके निवासी निर्धन हैं।”
देश की बेकारी की समस्या से निपटने के लिए शिक्षा-पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा । हमारी शिक्षा व्यवसाय-लक्ष्यीय होनी चाहिए। ऐसी शिक्षा नए लोगों में कार्य-शक्ति का विकास करके उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होगी तथा इससे उनमें उद्यम की भावना का भी जागरण होगा। बेकारी की समस्या से जूझने के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या पर भी रोक लगानी परमावश्यक है अन्यथा सारी योजनाएँ विफल हो जाएंगी।
आवश्यक है कि सरकार समूचे राष्ट्र के लिए एक व्यापक तथा अच्छी तरह से सोची-समझी रोजगार नीति अपनाए तथा सारी अर्थव्यवस्था को रोजगारोन्मुखी बनाया जाए। इसके लिए देश में सरकारी तथा निजी क्षेत्रों में उत्पादक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित किया जाए।
बेरोजगारी की समस्या वास्तव में एक गंभीर तथा जटिल समस्या है, जिसके निवारण के लिए अनेक उपायों की आवश्यकता है। जो विभिन्न योजनाएँ सामने आ रही हैं, उनसे यह आशा बंधी है कि धीरे-धीरे यह समस्या सुलझती जाएगी। आज के शिक्षित वर्ग ने जिस प्रकार परिवार नियोजन कार्यक्रम को अपनाया है उससे भी बेरोजगारों की संख्या अनियंत्रित रूप से नहीं बढ़ने पाएगी। सरकार की उदार आयात-निर्यात नीति के कारण अनेक बेरोजगार युवक-युवतियों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए हैं।